बचपन में बड़े बताया करते थे :- “ इंसान जो भी करता है पेट की आग को शांत करने की
खातिर करता है | इस आग की वजह से ही लोग हर अच्छे और बुरे कर्म करते हैं|”
कॉलेज लाइफ में प्रोफेसर ने बताया :-“मानव जीवन की तीन मूलभूत जरूरतें हैं – भूख, प्यास और सेक्स
| इन्हीं को पूरा करने के लिए वो सारे कर्म करता है |”
अब जब दुनिया को समझने की कोशिश करती हूँ तो ऐसा लगता है कि ये सारी सिर्फ
किताबी बातें है | यदि सिर्फ इन जरूरतों को पूरा करने से मानव जीवन पूर्ण हो जाता
तो फिर अमीर लोगों कि दुनिया में इतने क्राइम होते ही नहीं | मैंने पाया कि जब ये
सारी जरूरतें जब पूरी हो जाती है, तो इस आबादी के अंदर एक और आग जग जाती है – मन
कि आग / भूख | और फिर इस आग को बुझाने के क्रम में इच्छाओं कि ज्वालामुखी जन्म लेती
चली जाती हैं, जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती है | लोग ये नहीं देखते कि
उनके पास क्या है , बल्कि ये सोच कर जीवन जीने लगते हैं कि दूसरों के पास क्या है
| उनकी ज़िंदगी, एक ज़िंदगी नहीं प्रतियोगिता बन कर रह जाती है , सिर्फ एक
प्रतियोगिता......... जिसमे पाने के लिए कुछ नहीं होता है ..................क्यूंकि जीतने
पर सिर्फ तन्हाई मिलती है..................||